पिछले चार महीनों में राहुल गाँधी की भारत जोड़ों यात्रा भारतीय मीडिया में सुर्खियों में रही है। साथ ही इस पदयात्रा में विदेशी मीडिया ने भी रुचि दिखाई है। आइए जानते हैं कि विदेशी मीडिया में राहुल की यात्रा को कैसे देखा जा रहा है।
महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दें
जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू ने बीते दिसंबर के दूसरे हफ्ते में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कांग्रेस पार्टी इस यात्रा के जरिए महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दें उठाकर ना सिर्फ अपनी कोई राजनीतिक ताकत फिर से हासिल करना चाहती है बल्कि वह राहुल गाँधी को एक जननेता के रूप में भी स्थापित करना चाहती है।
2024 के आम चुनाव से पहले किसी तरह खुद में एक नई जान फूंकने का प्रयास
DW लिखता है, एक राजनीतिक पार्टी जिसने अपने 100 साल के लंबे इतिहास में से ज्यादातर समय भारतीय राजनीति को दिशा दी है, वह अब 2024 के आम चुनाव से पहले किसी तरह खुद में एक नई जान फूंकने के लिए छटपटा रही है। राजनीतिक विश्लेषक जोया हसन ने DW से कहा,
कांग्रेस इस समय जिस संकट का सामना कर रही है। उसकी वजह पार्टी की ओर से हिंदू राष्ट्रवाद का प्रभावशाली ढंग से सामना करने में विफल रहना है। यही नहीं इसके लिए धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण के चलते सिकुड़ते मध्य मार्ग के साथ साथ व्यक्तिगत और सांगठनिक असफलताएं भी जिम्मेदार हैं।
आम लोगों में इसके असर को भांपने की कोशिश
अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता समीर यासिर ने भारत जोड़ों यात्रा में चलकर आम लोगों में इसके असर को भांपने की कोशिश की है। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित खबर में समीर यासिर लिखते हैं,
अब जब आम चुनाव होने में बस 16 महीने शेष हैं तो राहुल गाँधी की यात्रा ये तय करती है कि भारत का बंटा हुआ विपक्ष पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के युग परिभाषित करने वाली महात्वाकांक्षाओं को विराम दे पाएगा।
भारत में बहुदलीय लोकतंत्र का भविष्य अधर में लटका हुआ है। भारत के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक नरेंद्र मोदी ने भारत की धर्मनिरपेक्ष नींव को एक नया स्वरूप दिया है, जो हिंदू समाज को तरजीह और मुस्लिमों समेत दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को हाशिए पर धकेलता है।
भारत जोड़ों यात्रा के जरिए अपनी पार्टी और देश की खराब सेहत सुधारने की कोशिश
पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार डॉन ने अपने इलाके में कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा और खड़गे की अपेक्षित सफलताओं को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है। अखबार लिखता है, राहुल गाँधी अपनी भारत जोड़ों यात्रा के जरिए अपनी पार्टी और देश की खराब सेहत सुधारने की कोशिश करना चाहते हैं।
12 राज्यों से होते हुए 150 दिनों में 3570 किलोमीटर की यात्रा करना कोई चमत्कारी काम नहीं है और ना ही राहुल गाँधी की ओर से कैमरों की मौजूदगी के बिना समुद्र में गोते लगाने की क्षमता दिखाना।
लेकिन सांप्रदायिक रूप से बंटे हुए कर्नाटक में हिजाब पहने स्कूली बच्ची का हाथ थामे हुए राहुल गाँधी की मुस्कुराती तस्वीर ही नेहरू और गाँधी वादी भारत का विचार था। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में खड़गे एक का मूल काम बीजेपी को हराना है जो कि उन्होंने अपने पहले अध्यक्षीय भाषण में स्वीकार भी किया है,
इस उद्देश्य की चुनावों में जीत से तुलना नहीं करनी चाहिए। खड़गे का काम इस यात्रा से मिली ऊर्जा के जरिए एक गठबंधन तैयार करना होगा, जिसका मूल मकसद बीजेपी को हराना होना चाहिए। कांग्रेस इससे पहले कई मौकों पर भी हाथ आए मौके गंवाती दिखी है। इसकी ओर से सीट शेयरिंग को लेकर दबाव विपक्षी दलों को एकसाथ आने से रोकता रहा है। विपक्ष को साथ लाकर एक मजबूत चुनाव जिताऊ मंच बनाना कांग्रेस पार्टी का प्रधानमंत्री बनाने से ज्यादा अहम है।
अभियान किसी अहिंसक सेना के विशाल सैन्य अभियान जैसा
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार द गार्डियन में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर का आर्टिकल छपा है। वो इस यात्रा के साथ चली थी। अखबार लिखता है, ये पूरा अभियान किसी अहिंसक सेना के विशाल सैन्य अभियान जैसा था। अलग अलग भाषाई समुदायों और पृष्ठभूमियों के लोगों को इस मार्च में शामिल होते देखना काफी दिलचस्प भरा था।
ये मिनी इंडिया का मार्च जैसा था। हमें पता था कि ये भारत मौजूद है, लेकिन इसका अनुभव कम ही होता है। पुरानी मुलाकातों की तरह मैंने इस मार्च में चलते हुए भी राहुल गाँधी को काफी विनम्र और तेज बुद्धि का शख्स पाया। उन्हें चुनौती देना और उनसे सहमत होना संभव था, जो कई भारतीय नेताओं के साथ संभव नहीं था।
नरेंद्र मोदी के साथ ऐसा करना संभव नहीं है क्योंकि वह तो प्रेस कॉन्फ्रेन्स भी नहीं करते हैं। मोदी की सभाओं में लोगों को वैभव के दर्शन होते हैं, लेकिन इससे इतर राहुल गाँधी की बढ़ी हुई दाढ़ी और आम लोगों के साथ तस्वीरें एक अच्छी राजनीतिक छवि गढ़ती है।