यहाँ 2022 का मौसम साल 2030 का ट्रेलर दिखा रहा है। क्या 2030 में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा? क्या 2022 का बदला हुआ मानसून पैटर्न कोई चेतावनी दे रहा है? जलवायु परिवर्तन से भारत की खेती को क्या खतरा है? क्लाइमेटचेंज के बुरे असर से खेती को कैसे बचाया जाए? हम आपको बताएंगे कि क्या खतरे हमारे सामने खड़े हैं और कैसे इन खतरों से? बचा जा सकता है। नमस्कार, स्वागत है आपका ट्रैक्टर बाबा पर
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वर्ष की शुरुआत में मौसमी घटनाएं
दोस्तों अब आपको बताते हैं 2022 की तीन ऐसी मौसमी घटनाएं जिनसे 2030 में क्या होने वाला है। इसको लेकर एक झलक देखने को मिली है। या यूं कहें कि एक ट्रेलर हमें दिखा है। पहली घटना हुई साल 2022 की शुरुआत में और महीने थे फरवरी और मार्च फरवरी मार्च अप्रैल के महीनों में मौसम इतना गर्म रहा कि उत्तर भारत में गेहूं का उत्पादन 35% तक घट गया।
यह एक असामान्य घटना थी। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। खासतौर से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसान फरवरी मार्च के गर्म मौसम की चपेट में आए। उत्तर भारत में फरवरी का महीना आमतौर पर ठंडा रहता है और इस दौरान गेहूं की फसल में बलिया निकलना शुरू हो जाती है, जो मार्च के सुहाने मौसम में पकती है।
उनमे दाना बनता है। लेकिन इस बार फरवरी महीने में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया। मार्च में तो पारा 40 डिग्री सेल्सियस तक चढ़ गया था पर इसका बुरा असर गेहूं उत्पादन पर पड़ा। किसानों को इस गर्मी की कीमत गेहूं उत्पादन में 35% तक उत्पादन में कमी के रूप में चुकानी पड़ी।
बागवानी को नुकसान
फरवरी महीने की गर्मी के कारण किन्नू उगाने वाले किसानों को भी भारी नुकसान हुआ। गर्मी के कारण किन्नू के पौधों पर लगे फूल झुलस गए। इसी तरह से जिन फलदार पौधों पर फरवरी मार्च के महीने में जो फ्लावरिंग होती है, फूल आते हैं उन सभी को नुकसान पहुंचा उनका उत्पादन है। लगभग आधा हो गया। यानी की 50% फलदार पौधों में नुकसान हुआ।
ये जो गर्मी थी फरवरी और मार्च महीने की एक किसानों के लिए बड़ा नुकसान लेकर आई और एक तरह से किसानों की कमर तोड़ दी। 200 मौसमी बदलाव की दूसरी घटना जून महीने में देखने को मिली। जून 2022 में गर्मी का 146 साल पुराना रिकॉर्ड टूटा। कई जगहों पर तापमान है। वो 49 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया।
वैज्ञानिक ने दावा किया है कि पिछले तीन दशक में जमीनी तापमान है। जो जमीन का तापमान है उसमें 1.57 फॉरेन्हाइट की बढ़ोतरी हुई है और अब इस बात की आशंका जताई जा रही है कि 2030 तक भारत में जो अधिकतम तापमान है वो दो डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। यानी की इसका मतलब यह है कि अब 50 डिग्री सेल्सियस का तापमान पार कर सकता है।
किसानों की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव
2030 तक या उससे पहले अब सवाल ये है कि क्या 2022 में उत्तरी भारत के कई राज्यों में जब पारा 49 डिग्री सेल्सियस को पार कर रहा था तो ये एक खतरे की घंटी है? इस तरह जो उत्तर भारत तपने लगा था जैसे की कोई भट्टी हो, इस भीषण गर्मी से किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।
जून महीने की भीषण गर्मी का असर चावल, कपास और गन्ना उत्पादक किसानों पर भी पड़ा है। भीषण गर्मी और लू के कारण भारत में खेती के लिए बड़ा खतरा सामने आया है और इस दौरान जब फसलें हैं वो बुरी तरह से इसकी चपेट में आई। कपास उगाने वाले किसानों को बहुत नुकसान इसका हुआ क्योंकि कपास के छोटे पौधे लू के कारण नष्ट हो गए थे।
दोस्तों 2022 में जलवायु परिवर्तन का असर दिखने वाली तीसरी घटना है। मॉनसून पैटर्न में बदलाव जहाँ पर बाढ़ आती है वहाँ पर इस बार सूखे की स्थिति है और जहाँ पर सूखा होता है कम बारिश होती है। वहाँ पर इस बार बाढ़ के हालात बन गए।
कहीं औसत बारिश तो कहीं बाढ़ की स्थिति
राजस्थान, पंजाब, कर्नाटक और तमिलनाडु में औसत से ज्यादा बरसात हुई और राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ समेत कई जिले ऐसे रहे जहाँ पर बाढ़ के हालात बने। आम तौर पर यहाँ सामान्य बरसात होती है या उससे थोड़ी कम बारिश होती है, लेकिन इस बार बहुत ज्यादा बारिश हुई है जो सामान्य से बहुत ज्यादा है।
उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में इस बार औसत से बहुत कम बारिश हुई है। जबकि आमतौर पर इन राज्यों में भारी बरसात होती हैं। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के विदर्भ, गुजरात, झारखंड, केरल और ओडिशा में सामान्य से कम बरसात इस बार रिकॉर्ड की गई है।
उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में औसत से कम बारिश हुई है। औसत से कम बारिश का आंकड़ा आपको बताए तो ये औसत है। वो 30% से लेकर 58% तक कम बारिश दर्ज की गई है। यानी की कई इलाके हैं जहाँ पर सूखे के हालात बन गए और झारखंड के कई जिलों में सरकार अकालग्रस्त उनको घोषित करने की तैयारी में है।
असामान्य मॉनसून
ऐसे बहुत सारे राज्यों के जिले हैं जहाँ पर सूखाग्रस्त घोषित किया जा सकता है या उसकी प्रक्रिया सरकार शुरू कर चुकी है। मौसम वैज्ञानिक 2022 के असामान्य मॉनसून पर्यटन का कारण जलवायु परिवर्तन को बता रहे हैं। साथ ही इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में मॉनसूनी बरसात का पर्यटन बदल सकता है।
यानी की जहाँ पर आमतौर पर बारिश होती है, वहाँ अकाल की स्थिति बन सकती है और जहाँ पर अकाल की स्थिति बनती है, वहाँ पर भारी बरसात हो सकती है। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि बारिश में बहुत कमी आए और साथ ही वैज्ञानिक ये भी कह रहे हैं कि आने वाले वक्त में मौसम विभाग के लिए मॉनसून का पता लगाना या उसके बारे में भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल हो जाएगा और इतने ज्यादा बदलाव आएँगे की उनको सटीक तरीके से पहचान पाना मुश्किल हो जाएगा।
यूरोप के कई देश भी लू से प्रभावित हुए हैं।
दोस्तों भारत ही नहीं दुनिया में भी 2022 में क्लाइमेटचेंज के असर को महसूस किया। 23 जून को ब्रिटिश कोलंबिया में तापमान 49.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था और अमेरिका ही नहीं ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देश इस बार हीटवेव से बेहाल नजर आए।
यूरोप में पहली बार इतनी गर्मी महसूस की गई। वैज्ञानिक इसे आने वाले वक्त की एक चेतावनी बता रहे हैं। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का असर पड़ा है। खास तौर पर आम आदमी का जनजीवन इससे प्रभावित हुआ है, लेकिन सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ा है वो खेती बाड़ी पर पड़ा है। किसानों पर पड़ा है।
दोस्तों भारत के लिए जलवायु परिवर्तन इसलिए ज्यादा मायने रखता है क्योंकि भारत के लगभग 70,00,00,000 लोग खेती बाड़ी पर निर्भर है और भारत की खेती का लगभग 68 प्रतिशत हिस्सा सूखा ग्रस्त है। पूरी तरह से मॉनसून पर निर्भर है। ऐसे में क्लाइमेटचेंज भारत के लिए बहुत मायने रखता है।
जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी
भारत के लिए जलवायु परिवर्तन के बुरे असर से बचने के लिए कदम उठाना बहुत जरूरी हो गया है, जिन्हें टालने का मतलब है बर्बादी को न्योता देना। भारत को अब जलवायु परिवर्तन के बुरे असर को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे। खास तौर से सरकार को इस दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।
पेड़ लगाने हों या फिर जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियाँ हैं, उनको कम करना हो। ये तमाम चीजें आप सरकार को करनी ही होगी। दोस्तों और जलवायु परिवर्तन है। उसके तीन घटनाओं में हमें यह देखने को मिला है कि आने वाले वक्त में कितनी मुश्किलें हमारे सामने बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
मौसम के लिहाज से पहली घटना फरवरी मार्च में भीषण गर्मी और दूसरा जो जून में है वो गर्मी का रिकॉर्ड टूटना 146 साल का और तीसरी घटना है वो है मॉनसून के पैटर्न में बदलाव। ये घटनाएं आने वाले वक्त के लिए एक चेतावनी दे रहे हैं। हमें वक्त रहते हैं, अब संभालना होगा